(भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 और 73)
प्रस्तुति: Delhi Law Firm® — आपके भरोसेमंद कानूनी साथी
कभी-कभी पूरी कानूनी लड़ाई एक पुराने दस्तावेज़ पर निर्भर होती है — और यदि उस पर लगे हस्ताक्षर की सत्यता पर संदेह हो जाए, तो पूरा मामला उलझ जाता है।
ऐसे में सवाल उठता है — क्या अदालत हस्ताक्षर की जाँच के लिए विशेषज्ञ (Handwriting Expert) को बुला सकती है?
इस लेख में हम जानेंगे कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा 45 और 73 इस स्थिति में क्या प्रावधान करती हैं।
⚖️ धारा 45 — विशेषज्ञ राय (Expert Opinion)
साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के अनुसार, जब अदालत के सामने किसी हस्ताक्षर, लेखन या फिंगरप्रिंट की सत्यता पर प्रश्न उठता है, तो वह विशेषज्ञ की राय मांग सकती है।
ऐसे विशेषज्ञ को आमतौर पर Forensic Handwriting Expert कहा जाता है, जो वैज्ञानिक विश्लेषण द्वारा बताता है कि हस्ताक्षर असली हैं या नकली।
कब बुलाया जा सकता है विशेषज्ञ:
- जब दस्तावेज़ पर लगे हस्ताक्षर की प्रामाणिकता विवादित हो।
- जब पक्षकारों में से कोई “Forgery” का आरोप लगाए।
- जब न्यायालय को स्वयं संदेह हो कि दस्तावेज़ असली नहीं है।
📜 धारा 73 — तुलना (Comparison by Court)
धारा 73 के तहत, अदालत स्वयं भी किसी व्यक्ति के ज्ञात हस्ताक्षर या लिखावट की तुलना विवादित दस्तावेज़ से कर सकती है।
लेकिन यह केवल सहायक प्रक्रिया है — अंतिम निर्णय के लिए अदालत आम तौर पर विशेषज्ञ राय पर भरोसा करती है।
👩⚖️ सुप्रीम कोर्ट का 2025 का अहम फैसला
Hussain Bin Awaz vs Mittapalli Venkata Ramulu (2025) में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अदालत को “fishing expedition” यानी बिना ठोस कारण के साक्ष्य तलाशने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
केवल तभी विशेषज्ञ को बुलाया जा सकता है, जब पर्याप्त आधार हो कि दस्तावेज़ विवादित है।
💡 न्याय प्रक्रिया का महत्व
न्याय केवल अंतिम परिणाम में नहीं बल्कि प्रक्रिया में भी निहित होता है।
धारा 45 और 73 का उद्देश्य है — अदालत को सही उपकरण देना ताकि सत्य की खोज निष्पक्ष रूप से हो सके।
🎥 वीडियो में जानिए:
- हैंडराइटिंग एक्सपर्ट को कब और कैसे बुलाया जाता है।
- अदालत किन दस्तावेज़ों को “स्वीकृत” मानती है।
- धारा 45 व 73 का व्यावहारिक महत्व क्या है।
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