Supreme Court का ऐतिहासिक निर्णय: Anand Karaj विवाह पंजीकरण अब पूरे भारत में अनिवार्य
Anand Karaj Marriage Registration पर Supreme Court का बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 4 सितंबर 2025 को दिया गया अपना ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट कर दिया कि अब Anand Karaj विवाह पंजीकरण पूरे भारत में अनिवार्य होगा। यह फैसला न केवल सिख समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि भारत की संपूर्ण विवाह पंजीकरण व्यवस्था और नागरिक अधिकारों के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ है।
इस निर्णय का मूल आधार Anand Marriage Act, 1909 की धारा 6 है, जिसमें राज्यों पर यह कानूनी कर्तव्य डाला गया था कि वे विवाह पंजीकरण के लिए नियम बनाएँ और एक समान प्रणाली लागू करें। कई राज्यों द्वारा नियम न बनाए जाने को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक माना।
समानता का अधिकार और राज्य की जिम्मेदारी
अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि किसी भी नागरिक को राज्य की उदासीनता या प्रशासनिक कमियों के कारण भेदभाव का सामना नहीं करना चाहिए। यदि कानून Anand Karaj को वैध विवाह मानता है, तो उसका पंजीकरण न होना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
अदालत ने यह भी कहा कि संवैधानिक वादों की सच्ची निष्ठा केवल अधिकार देने में नहीं, बल्कि उन अधिकारों को लागू करने वाली प्रणाली स्थापित करने में है। यह सिद्धांत पूरे निर्णय में स्पष्ट रूप से झलकता है।
विवाह प्रमाणपत्र का महत्व
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि विवाह प्रमाणपत्र केवल एक औपचारिक दस्तावेज नहीं है। यह व्यक्ति की पहचान, वैवाहिक स्थिति, बैंक नॉमिनेशन, बीमा दावे, पासपोर्ट, वीज़ा, उत्तराधिकार, स्कूल एडमिशन और महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा से सीधे जुड़ा होता है।
इसलिए, Anand Karaj विवाहों का पंजीकरण न होने को अदालत ने सिख नागरिकों के साथ असमान व्यवहार माना और इसे तुरंत सुधारने की आवश्यकता बताई।
राज्यों और केंद्र सरकार को जारी किए गए आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने भारत के 17 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों को कड़े निर्देश दिए कि वे चार महीनों के भीतर Anand Marriage Act की धारा 6 के तहत नियम बनाकर गजट में प्रकाशित करें। साथ ही, उन्हें इन नियमों को विधान सभा के समक्ष प्रस्तुत करना भी अनिवार्य होगा।
जब तक नए नियम लागू नहीं हो जाते, तब तक भी Anand Karaj विवाहों का पंजीकरण समान रूप से किया जाएगा, और विवाह प्रमाणपत्र में स्पष्ट रूप से उल्लेख होगा कि विवाह Anand Karaj विधि के आधार पर संपन्न हुआ है।
Section 6(5): दोबारा पंजीकरण की कोई आवश्यकता नहीं
अदालती आदेश में यह भी कहा गया कि एक बार Anand Marriage Act के तहत विवाह पंजीकृत हो जाए, तो किसी भी अन्य कानून के तहत दोबारा पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है। कई राज्यों के अधिकारी गलती से यह मांग करते थे, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने गलत बताया।
Nodal Officer की नियुक्ति और मॉडल नियम
हर राज्य को दो महीनों के भीतर एक सचिव-स्तर का Nodal Officer नियुक्त करने का निर्देश दिया गया है, जो शिकायतों की निगरानी करेगा और भेदभाव समाप्त करेगा।
केंद्र सरकार को भी दो महीनों में Model Rules तैयार कर राज्यों को भेजने और छह महीनों में राष्ट्रीय अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।
विशेष राज्य: गोवा और सिक्किम
कुछ राज्यों जैसे गोवा और सिक्किम में संवैधानिक प्रावधानों के कारण प्रक्रिया थोड़ी अलग है। गोवा में Union of India को पहले विशेष अधिसूचना जारी करनी होगी, उसके बाद राज्य नियम बना सकेगा। वहीं सिक्किम में Article 371F के कारण कोर्ट ने अलग निर्देश दिए।
अधिकारियों द्वारा मना करने पर नागरिकों की सुरक्षा
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोई भी अधिकारी केवल इस आधार पर Anand Karaj विवाह के पंजीकरण से मना नहीं कर सकता कि “नियम नोटिफाई नहीं हुए हैं”। यदि मना किया जाता है, तो अधिकारी को लिखित कारण देना होगा और वह आदेश चुनौती योग्य होगा।
निर्णय का व्यापक सामाजिक प्रभाव
यह निर्णय केवल सिख समुदाय तक सीमित नहीं है। यह पूरे भारत के लिए एक संकेत है कि जब संसद कोई अधिकार देती है, तो राज्यों का दायित्व है कि वे उस अधिकार को व्यवहार में लागू करें।
यह निर्णय महिलाओं के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि विवाह प्रमाणपत्र maintenance, domestic violence, matrimonial relief जैसे मामलों में आवश्यक होता है।
अंतरराज्यीय विवाह और Court Marriage मामलों में बड़ी राहत
अब भारत के किसी भी राज्य में Anand Karaj विवाह पंजीकरण बाध्यकारी है। इससे उन जोड़ों को बहुत राहत मिलेगी जो अंतरराज्यीय विवाह करते हैं और पंजीकरण में असमानता का सामना करते थे।
Court Marriage और विवाह पंजीकरण से जुड़े मामलों में यह निर्णय एक महत्वपूर्ण कदम है, जो समान नागरिक अधिकार सुनिश्चित करता है।
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निष्कर्ष: समानता और न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय केवल एक तकनीकी कानूनी आदेश नहीं, बल्कि भारत के संविधान के समानता के मूल सिद्धांत को मजबूत करने वाला ऐतिहासिक कदम है।
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