कोर्ट मैरिज में मेडिकल एज टेस्ट ऑसिफिकेशन और डेंटल रिपोर्ट निर्णायक सबूत

स्मृति सानिया बनाम उत्तर प्रदेश राज्य: इलाहाबाद हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

नमस्कार, आपका स्वागत है Delhi Law Firm के इस विशेष कानूनी विश्लेषण में। आज हम इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस महत्वपूर्ण निर्णय का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, उम्र निर्धारण और पुलिस एवं चाइल्ड वेलफेयर कमेटियों की भूमिका से जुड़े कई महत्वपूर्ण प्रश्नों को स्पष्ट किया है।

मामले की पृष्ठभूमि और महत्वपूर्ण तथ्य

स्मृति सानिया और विकास का प्रेम संबंध लगभग चार वर्षों से चल रहा था। दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन सानिया का परिवार इसके खिलाफ था। 2023 में परिवार ने पहली FIR दर्ज करवाई, जिसमें अपहरण जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे, लेकिन अदालत में सानिया ने स्वयं बताया कि वह अपनी इच्छा से विकास के साथ गई थी।

विकास को उस समय जेल भी जाना पड़ा, लेकिन अदालत ने साक्ष्यों के आधार पर उसे जमानत दे दी। कुछ समय बाद सानिया अपने परिवार के पास लौट गई, लेकिन 2025 में स्थिति फिर से गंभीर हो गई जब 29 जून 2025 को उसके पिता ने दूसरी FIR दर्ज करवाई।

इस FIR में भी आरोप लगाया गया कि विकास ने ‘नाबालिग’ लड़की को बहला-फुसलाकर भगा लिया। यहीं से मामला फिर अदालत के सामने पहुँचा और हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की गई।

सबसे बड़ा सवाल: क्या सानिया बालिग थी?

पूरा विवाद सानिया की उम्र पर केंद्रित था। पुलिस ने स्कूल रिकॉर्ड में दर्ज जन्मतिथि 25 अप्रैल 2009 दिखाई, जिससे वह नाबालिग प्रतीत होती थी। लेकिन अदालत ने पाया कि यह जन्मतिथि केवल आधार कार्ड के आधार पर दर्ज की गई थी और स्कूल में उसका एडमिशन भी सीधे कक्षा 5 में हुआ था।

चूंकि आधार कार्ड उम्र निर्धारण का विश्वसनीय प्रमाण नहीं है, इसलिए अदालत ने स्कूल रिकॉर्ड और आधार कार्ड दोनों को अविश्वसनीय माना। कोई जन्म प्रमाणपत्र मौजूद नहीं था, इसलिए अंतिम विकल्प मेडिकल एज टेस्ट था।

मेडिकल एज टेस्ट: Ossification और Dental Examination

अदालत ने सानिया के मेडिकल परीक्षण—Ossification Test और Dental Examination—को सबसे विश्वसनीय माना। दोनों रिपोर्टों ने यह दर्शाया कि उसकी उम्र लगभग 18 वर्ष है। मेडिकल विज्ञान में दो वर्ष ऊपर या नीचे की त्रुटि मान्य होती है, और ऐसी स्थिति में व्यक्ति के पक्ष में निर्णय दिया जाता है।

इसलिए अदालत ने घोषित किया कि सानिया बालिग है और अपने जीवन के निर्णय स्वयं ले सकती है।

बालिग लड़की की इच्छा सर्वोपरि है—अदालत की टिप्पणी

जब अदालत ने सीधे सानिया से पूछा कि वह कहाँ रहना चाहती है, तो उसने स्पष्ट कहा कि वह अपने माता-पिता के पास नहीं, बल्कि विकास के साथ रहना चाहती है। अदालत ने कहा कि बालिग व्यक्ति की इच्छा से ऊपर न परिवार, न समाज, और न ही राज्य खड़ा हो सकता है।

यह हैबियस कॉर्पस याचिका थी, इसलिए अदालत का दायरा केवल यह देखना था कि क्या लड़की की स्वतंत्रता का हनन हुआ है या नहीं।

पुलिस और CWC की गलतियाँ: अदालत की कड़ी टिप्पणी

अदालत ने पुलिस और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी पर गंभीर टिप्पणियां कीं। पुलिस ने हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद लड़की को “कस्टडी” में लिया और तुरंत मेडिकल टेस्ट करवाकर उसे CWC के सामने प्रस्तुत किया। CWC ने भी बिना उचित जांच के उसे प्रोटेक्शन होम भेज दिया।

अदालत ने स्पष्ट कहा कि किसी बालिग लड़की को उसकी इच्छा के विरुद्ध प्रोटेक्शन होम भेजना असंवैधानिक है।

अदालत का अंतिम निर्णय: स्वतंत्रता सर्वोपरि

जब यह सिद्ध हो गया कि सानिया बालिग है, तो अदालत ने सीधे आदेश दिया कि उसे तुरंत प्रोटेक्शन होम से रिहा किया जाए और उसे जहां चाहे वहां जाने की अनुमति दी जाए।

अदालत ने दोहराया कि— कोई भी अधिकारी, परिवार या संस्था बालिग व्यक्ति को उसकी इच्छा के खिलाफ कहीं नहीं रख सकती।

इस निर्णय से निकलने वाले महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत

  • बालिग लड़की की इच्छा सबसे ऊँचा कानून है।
  • आधार कार्ड आयु का प्रमाण नहीं है।
  • स्कूल रिकॉर्ड तभी स्वीकार्य है जब विश्वसनीय स्रोत पर आधारित हो।
  • मेडिकल एज टेस्ट अंतिम और सर्वाधिक भरोसेमंद आधार है।
  • पुलिस द्वारा गलत तरीके से “कस्टडी” लेना असंवैधानिक है।
  • प्रोटेक्शन होम में जबरन रखना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

देशभर के प्रेम विवाह और हैबियस कॉर्पस मामलों पर प्रभाव

यह फैसला उन हजारों युवाओं के लिए राहत है जो परिवार के विरोध या गलत FIR के कारण परेशान होते हैं। अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि यदि लड़की बालिग है, तो उसे अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने या विवाह करने का पूरा अधिकार है।

यह निर्णय आने वाले वर्षों में प्रेम विवाह, उम्र निर्धारण, पुलिस दखल और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित मामलों में मार्गदर्शन करेगा।

कानूनी सहायता: Delhi Law Firm आपकी मदद के लिए हमेशा उपलब्ध

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