हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई विवाह पंजीकरण कानून

शादी का रजिस्ट्रेशन क्या हिंदू विवाह की वैधता के लिए अनिवार्य है? (सुनील दुबे फैसला 2025)

हिंदू विवाह का रजिस्ट्रेशन एक ऐसा विषय है जिस पर वर्षों से विवाद और भ्रम बना हुआ है। बहुत से लोग मानते हैं कि अगर विवाह का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ, तो शादी कानूनी रूप से वैध नहीं मानी जाती। लेकिन हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनील दुबे बनाम मीनाक्षी (2025) केस में इस प्रश्न पर महत्वपूर्ण निर्णय दिया है।

यह मामला एक ऐसे दंपति से जुड़ा था जिनकी शादी 2010 में हुई थी और बाद में उन्होंने आपसी सहमति से तलाक की अर्जी फैमिली कोर्ट में दायर की। फैमिली कोर्ट ने उनसे कहा कि पहले Marriage Registration Certificate जमा करें, तभी तलाक की प्रक्रिया आगे बढ़ सकती है। दंपति ने दलील दी कि हिंदू Marriage Act, 1955 में रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं है।

मामला हाईकोर्ट पहुँचा और न्यायालय ने स्पष्ट किया कि Hindu Marriage Act की Section 8 का उद्देश्य केवल विवाह का प्रमाण उपलब्ध कराना है — विवाह की वैधता निर्धारित करना नहीं। अर्थात, रजिस्ट्रेशन न होने से कोई भी हिंदू विवाह अवैध नहीं हो जाता।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियम, 2017 केवल उन्हीं विवाहों पर लागू होते हैं जो 2017 के बाद संपन्न हुए हों। चूँकि यह विवाह 2010 में हुआ था, इसलिए ये नियम लागू नहीं होते।

Section 8(5) के अनुसार, यदि किसी स्थान पर रजिस्ट्रेशन अनिवार्य भी हो, और फिर भी विवाह पंजीकृत न कराया जाए, तो विवाह अवैध नहीं माना जा सकता। अधिकतम ₹25 का नाममात्र जुर्माना लगाया जा सकता है।

अन्य धर्मों में विवाह प्रमाण की स्थिति

मुस्लिम कानून में निकाह एक सिविल अनुबंध (Civil Contract) माना जाता है इसलिए उसका दस्तावेजीकरण और रजिस्ट्रेशन बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। निकाहनामा मुख्य दस्तावेज होता है।
अब्दुल क़ादिर बनाम सलीमा मामले में भी न्यायालय ने माना कि निकाह एक अनुबंध के समान है, अतः दस्तावेज़ीकरण आवश्यक है।

ईसाई विवाह Indian Christian Marriage Act, 1872 के तहत होते हैं, जहाँ पादरी या Marriage Registrar विवाह का पंजीकरण करते हैं।

व्यावहारिक दृष्टि — रजिस्ट्रेशन क्यों आवश्यक है?

भले ही हिंदू विवाह बिना रजिस्ट्रेशन के भी वैध होता है, लेकिन वास्तविक जीवन में इससे कई समस्याएँ हो सकती हैं—

  1. सबूत की समस्या:
    यदि विवाह प्रमाणपत्र न हो, तो तस्वीरें, निमंत्रण पत्र, गवाह आदि पर निर्भर रहना पड़ता है। रजिस्ट्रेशन इन सबकी आवश्यकता को समाप्त कर देता है।
  2. सरकारी कार्यों में बाधाएँ:
    बैंक, पीएफ, बीमा, पासपोर्ट, उत्तराधिकार और संपत्ति विवादों में Marriage Certificate अक्सर आवश्यक होता है।
  3. न्यायिक प्रक्रियाओं में देरी:
    तलाक, मेंटेनेंस और कस्टडी मामलों में विवाह प्रमाणपत्र होने से प्रक्रिया सरल और तेज़ हो जाती है।

सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय

  • Seema बनाम Ashwani Kumar (2007) — विवाह पंजीकरण वैधता की शर्त नहीं, बल्कि प्रमाण का साधन है।
  • Dolly Rani बनाम Manish Kumar Chanchal (2024) — अवैध विवाह सिर्फ रजिस्ट्रेशन से वैध नहीं हो सकता; रीतिरिवाजों का पालन आवश्यक है।

निष्कर्ष

Hindu Marriage Act के अंतर्गत विवाह का रजिस्ट्रेशन वैधता की शर्त नहीं है।
यह केवल एक महत्वपूर्ण दस्तावेजी प्रमाण है।
कानून इसे अनिवार्य भले न माने, लेकिन आज की व्यावहारिक और प्रशासनिक व्यवस्था में विवाह रजिस्ट्रेशन लगभग आवश्यक हो चुका है।